Saturday 27 August 2011

aastik vs nastik PART - 1


जो लोग ऐसा कहते हँ की बन्दर से आदमी बना उन्हें अभी काफी कुछ जानना बाकि हँ
बहुत सारे तर्कों से इस थ्योरी को गलत साबित किया जा सकता हँ......
अगर बंदरो से इंसान बनते तो आज बंदरो की प्रजाति ही अस्तित्व में ना होती, सभी बन्दर आज तक मनुष्य में परिवर्तित हो गए होते..
जो लोग ऐसा कहते हँ वे लोग नास्तिक हँ
विज्ञान को अभी काफी कुछ जानना बाकि हँ
एक दिन कोई लेमार्क नाम का वैज्ञानिक कुछ सिद्धांत दे, कुछ दिन उसे डार्विन नाम का वैज्ञानिक गलत साबित कर दे, फिर कुछ दिन बाद कोई दूसरा वैज्ञानिक भी डार्विनवाद को गलत साबित कर दे, ये विज्ञान नहीं हो सकता, विज्ञान के नाम पर धोखा हँ
एक दिन विज्ञान कुछ कहे, दुसरे दिन कुछ?? ये कैसे माना जाये?
सबसे बड़ा सवाल हँ की जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई??
हँ कोई वैज्ञानिक जो किसी भी तरीके से जड़ पदार्थो से जीवन की उत्पत्ति कर सके?
हँ कोई वैज्ञानिक जो बता सके की क्यों पृथ्वी सूर्य के चारो और एक निश्चित अंतराल पर चक्कर काटती रहती हँ? क्यों चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता हँ? क्यों सभी तरह के मौसम समय पर आते जाते हँ?
हँ कोई वैज्ञानिक जो बिना बच्चा पैदा किये माँ के स्तनों में दूध पैदा कर सके?
हँ कोई वैज्ञानिक जो मनुष्य जैसी संरचना बना सके, जिसमे खाना खाने से लेकर उसके शारीर में खपने आदि क्रिया, रक्त के नसों में बहने को, नसों के जाल को व्यवस्थित कर सके??
कोई ये कहे की शारीर में ये अमाशय, किडनी, ह्रदय, बुद्धि, आदि सभी तरह की संरचनाये अपने आप ही बन गयी हँ, तो वो बहुत बड़ा बेवक़ूफ़ हँ
जो आदमी शास्त्रों के अनुसार नियमपूर्वक और श्रद्धा पूर्वक साधना करे, और उसे भगवत प्राप्ति न हो, यहाँ तक की कोई सिद्धि भी न मिले और भगवत क्षेत्र का कुछ भी अनुभव ना हो सिर्फ और सिर्फ वो आदमी ये कहने का हकदार हँ की भगवान् नाम की कोई चीज नहीं होती
साधना भी ना करे, और कहे की भगवान् नाम की कोई चीज नहीं होती तो ऐसे '''' विद्वान् '''आदमी को क्या कहा जाए, ये आप लोग स्वयं ही विचार करे ......
जहा तक शास्त्रों की बात हँ तो शास्त्र ये खुला उद्घोष करते हँ की कोई भी आदमी इस जगत में कभी ऐसा नहीं हुआ की जो नास्तिक हो...
ऐसा आदमी होना कभी संभव भी नहीं हँ...
तुलसीदास आदि अनेक भगवत प्राप्त सैंट महात्माओं ने इस तरफ अपने बहुत से दोहों , पदों में इशारा किया हँ
ऐसा सुनने में अटपटा सा जुरूर लगता हँ लेकिन, जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे महापुरुष के पास जाकर ब्रह्मज्ञान सीखता हँ जो स्वयं भगवत प्राप्ति किये हो और जो वेदों के गहनतम अर्थ से भी अवगत हो, उसके अधीन रहकर साधना karta हँ tab व्यक्ति जान जाता हँ की ऐसा ही हँ, किसी भी व्यक्ति के liye कभी भी नास्तिक होना संभव नहीं हँ
अगर सिर्फ पढ़कर के कोई शास्त्रों को समझ सकता तो आज हर कोई भगवत प्राप्ति किये बता होता..
भगवान् भी कभी अर्जुन को ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के पास जाकर , उसे विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर , उसकी सेवा करके उससे ज्ञान प्राप्ति करने को ना कहते, (भगवद्गीता चोथा अद्धयाय का ३४ वा श्लोक )
बजाय इसके कुछ लोग स्वयं ही शास्त्रों का अध्यन करके और अपनी मायिक बुद्धि अनुसार ही उन शास्त्रों का अर्थ निकालते हँ
और कोई हेरानी नहीं की ऐसा करके वे लोग और भी शंका से ग्रस्त हो जाते हँ,
ये वो दवाई हँ जो बीमारी से ज्यादा खतरनाक हँ..
फिर वे लोग जगह जगह शास्त्रों वेदों को लेकर अपनी मनमानी बाते करते करते फिरते हँ, या कहिये की वेदों के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते फिरते हँ,
अगर कोई जातव धर्म ग्रंथो को पढता हँ तो वो उसमे जातिवाद ही ढूंढता हँ, उसे हर जगह बस ब्राह्मणों की चाल ही दिखाई देती रहती हँ..
कोई क्षत्रिया उसे पढता हँ तो उसे उसमे अपनी रूचि अनुसार युद्ध या अन्य हिंसक प्रसंग ज्यादा पसंद आते हँ,
लेकिन, बिना किसी ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के कोई भी वेदों शास्त्रों के मर्म को नहीं जान सकता
ये वेड शास्त्र बड़े गूढ़ हँ, इनका शब्द तो कुछ और हँ पर अर्थ कुछ और ही हँ
ये बड़े कमाल की बात हँ की हम सांसारिक विद्या या कहे की स्चूली विद्या को बिना टीचर के नहीं समझ सकते, नुर्सेरी क्लास से लेकर और ग्रेजुएट तक हम स्कूली टीचेर का सहारा लेते हँ, लेकिन ब्रह्मज्ञान सम्बन्धी ग्रन्थ पढने पर हम स्वयं ही अपने आपको भगवान् का भैया मान बैठते हँ , और आगे चलकर ये भी कहते हँ की हमने सब पढ़ लिया हँ, भगवान् नाम की कोई चीज नहीं होती..
कोई उनसे पूछे की सब पढ़ तो लिया हँ, मान लिया की आप शब्दों के जानकार हो गए हँ पर क्या कभी कुछ अनुभव भी किया हँ??
तो उनके पास शायद कोई जवाब ना हो.........

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