Saturday 27 August 2011

भारत में धर्मनिरपेक्षता मतलब हिन्दुओ की दुर्गति की संवेधानिक व्यवस्था

भाइयो , में आज तक ''धर्मनिरपेक्षता '' का मतलब नही समझ पाया हु.....
आखिर ये धर्मनिरपेक्षता कैसे संभव हँ??
धर्मनिरपेक्षता मतलब, '' किसी भी धर्म का पक्ष ना लेना, धर्म के मामले में बिलकुल निष्पक्ष ...
पर क्या ये संभव हँ?
जरा ध्यान दीजियेगा.......
ये धर्मनिरपेक्षता वह तो चल सकती हँ जहा की दो धर्म बराबर आबादी वाले हो मतलब की 50-50% हो...
लेकिन, वह क्या जहा की एक धर्म की आबादी तो 80% हो और दुसरे की 17% हो...??
स्पष्ट रूप से में भारत में हिन्दू और इस्लाम की बात कर रहा हाउ...
अस्सी प्रतिशत की आबादी वाला हिन्दू धर्म अपने धर्म ग्रंथो द्वारा निर्देशित शाशन प्रणाली, शिक्षा व्यवस्था आदि का हकदार हँ, लेकिन ये यहाँ इस भारत में नही होता क्योकि , 17% की आबाद वाला इस्लाम भी इस देश में हँ...
मतलब साफ़ हँ की 80% आबादी वाला और महज 17% आबादी वाला धर्म दोनों एक ही धरातल पर हँ...
तो ये धर्मनिरपेक्षता कैसे हुई?
ये तो उस 17% की आबादी वाले मजहब की जीत हुई...
जिसने महज 17% की आबादी होने पर भी अस्सी परिताशत की आबादी वाले हिन्दू धर्म की बराबरी वाला अधिकार हासिल कर लिया?...
ये कोण सा न्याय हँ?
ये कैसी निष्पक्षता हँ?
ये धर्मनिरपेक्षता हँ क्या? ये तो सीधे सीधे 17% की आबादी वाले इस्लाम का पक्ष लिया गया हँ?

२.दूसरी बात, ये हिन्दू धर्म वाले तो इस देश के मूल निवासी हँ, पर ये इस्लाम तो बाहरी मजहब हँ...
इस बहरी मजहब को स्वदेशी हिन्दू धर्म की कीमत पर बराबरी करवाना कहा तक उचित हँ?
हिन्दू इस देश की सभ्यता और संस्कृति हँ.. फिर भी उसे इसी देश में बढ़ावा देने की बजाय धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पीछे क्यों धकेला जाता हँ?

३. तीसरी बात, ये हिन्दू धर्मं तो लाखो साल पुराना हँ और सीधे भगवान् से चला हुआ धर्म हँ, लेकिन ये इस्लाम तो महज1700-1800 साल पुराना और भगवान् के दूत, या पैगम्बर का चलाया हुआ धर्म हँ...... भला इस्लाम से महान हिन्दू धर्म की बराबरी करवाना कैसे उचित हँ?
भला धर्मनिरपेक्षता के नाम पर महान हिन्दू धर्म और इस इस्लाम को एक ही गिनती में कैसे गिना जा सकता हँ? कैसे इस दोनों की बराबरी करवाई जा सकती हँ?
ये धर्मनिरपेक्षता हँ या खुल्लमखुल्ला धर्मपक्षता??

४. चौथी बात, हिन्दू और इस्लाम को मानने का बड़े से बड़ा फल क्या हँ?
हिन्दू धर्म में तो कहा जाता हँ की स्वर्ग और वह मिलने वाली अप्सराये एक धोखा हँ, वास्तविक सुख केवल भगवान् की प्राप्ति में ही हँ, इन्द्रियों से मिलने वाला कोई भी सांसारिक सुख कभी भी शास्वत शांति और आनंद नही दे सकता, फिर स्वर्ग भी तभी तक मिलता हँ जितनी मात्र के हमारे पुण्य कर्म हँ, स्वर्ग भोगते भोगते पुण्य कर्म ख़तम हो गए तो फिर पृथ्वीलोक पर आकर गधा बिल, सूअर आदि विभिन्न प्रकार की यौनियो में भटकना पड़ेगा... इसीलिए इसीजन्म में भगवत प्राप्ति करके दुखालय मतलब दुखो के इस घर जहा, कामना, क्रोध, लोभ , मोह, आदि मायिक गुणों से छुटकारा पाया जा सकता हँ और सदा के लिए भगवत प्राप्ति कर चिर काल के लिए शाश्वत शान्ति और दिव्या आनंद की प्राप्ति की जा सकती हँ..
इन मायिक गुणों के कारण जीव कभी भी इस लोक में (बिना भगवत प्राप्ति किये )शांति नहीं पाता.
अगर कोई शांति पाता लगता भी हँ तो वो क्षणिक ही होती हँ, पुनः ये मायिक गुण आकर घेर लेते हँ...
हिन्दू धर्म ग्रंथो में तो इस बारे से बहुत ही विस्तार से बताया गया हँ... यहाँ उनके एक थोड़े हिस्से का भी वर्णन नही हो सकता..
और सबसे बढ़कर तो ये की जिसने भगवान् को ही प्राप्त कर लिया तो अब उसे क्या प्राप्त करने को बाकि रहा?
लेकिन...
लेकिन...
लेकिन..... इस्लाम को मानने का फल क्या हँ?
जन्नत में मिलने वाली 72 हूरे. ?????? फिर????? उसके बाद क्या???
ये कैसा मजहब हँ?? जो एक दिन (कभी न कभी ) नष्ट होने वाले फल को देने वाला हँ? और ये फल भी कैसा हँ?
भला ऐसे फल देने वाले इस्लाम की क्या कभी हिन्दू धर्म से बराबरी हो सकती हँ?
अगर नहीं तो ये धर्मनिरपेक्षता जैसी गंदगी इस देश में क्यों फेलाई जा रही हँ?
क्यों हिन्दुओ को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा हँ?
इस धर्मनिरपेक्षता की मार सिर्फ हिन्दुओ पर ही क्यों पड़ रही हँ?

और फिर जब आप धर्मनिरपेक्षता की मतलब अल्संख्यक इस्लाम को भी उतने ही अधिकार देते हँ तो मतलब आप स्पष्ट रूप से इस्लाम के उस सिद्धांत से सहमत हँ की गेर मुसलमान काफिर होते हँ...
मतलब, आप स्पष्ट रूप से हिन्दुओ और दुसरे धर्म वालो को काफिर मान रहे हँ...... फिर ये कोण सी धर्मनिरपेक्षता हँ?
जब इस्लाम खुद में धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानता, वो सिर्फ सिर्फ, और सिर्फ इस्लाम को चाहता हँ दुनिया में और धर्मनिरपेक्षो को काफिर कहता हँ तो फिर ये बेहूदगी क्यों फेलाई जा रही हँ देश में????

1 comment:

  1. साधु लोग जब भगवानके नाम अधर्म आचरण करने लगते है तब भगवान आते है सीधा मार्ग बनाके मनुष्यका अपने तक फिर जाके सत्व हृदयस्थ् हो जाते है। जो भगवान ने नकलंकी अवतार ले लिया है। नकलंकी अवतारका सीधा अर्थ है हरेक मनुष्यमे ही क्या सभी जगह दर्शन हो रहा है। चाहे जीस रुपमे देखो न देखो बस अपने आपमे देख शक्ते हो देख लो बस हो गया दर्शन।

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