Saturday 27 August 2011

भारत में छुआ-छूत का कभी कोई स्थान नहीं रहा..


प्रमाणों की रोशनी में देखें तो पता चलता है कि भारत में जातियां तो थीं पर छुआ- छूत नहीं. स्वयं अंग्रेजों के द्वारा दिए आंकड़े इसके प्रमाण हैं.

भारत को कमज़ोर बनाने की अनेक चालें चलने वाले अंग्रेजों ने आंकड़े जुटाने और हमारी कमजोरी व विशेषताओं को जानने के लिए सर्वे करवाए थे. उन सर्वेक्षणों के तथ्यों और आज के झूठे इतिहास के कथनों में ज़मीन आस्मान का अंतर है.

सन 1820 में एडम स्मिथ नामक अँगरेज़ ने एक सर्वेक्षण किया. एक सर्वेक्षण टी. बी. मैकाले ने 1835 करवाया था. इन सर्वेक्षणों से ज्ञात और अनेक तथ्यों के इलावा ये पता चलता है कि तबतक भारत में अस्पृश्यता नाम की बीमारी नहीं थी.

यह सर्वे बतलाता है कि—

# तब भारत के विद्यालयों में औसतन 26% ऊंची जातियों के विद्यार्थी पढ़ते थे तथा 64% छोटी जातियों के छात्र थे.

# 1000 शिक्षकों में 200 द्विज / ब्राह्मण और शेष डोम जाती तक के शिक्षक थे. स्वर्ण कहलाने वाली जातियों के छात्र भी उनसे बिना किसी भेद-भाव के पढ़ते थे.

# मद्रास प्रेजीडेन्सी में तब 1500 ( ये भी अविश्वसनीय है न ) मेडिकल कालेज थे जिनमें एम्.एस. डिग्री के बराबर शिक्षा दी जाती थी. ( आज सारे भारत में इतने मेडिकल कालेज नहीं होंगे.)

# दक्षिण भारत में 2200 ( कमाल है! ) इंजीनियरिंग कालेज थे जिनमें एम्.ई. स्तर की शिक्षा दी जाती थी.

# मेडिकल कालेजों के अधिकांश सर्जन नाई जाती के थे और इंजीनियरिंग कालेज के अधिकाँश आचार्य पेरियार जाती के थे. स्मरणीय है कि आज छोटी जाती के समझे जाने वाले इन पेरियार वास्तुकारों ने ही मदुरई आदि दक्षिण भारत के अद्भुत वास्तु वाले मंदिर बनाए हैं.

# तब के मद्रास के जिला कलेक्टर ए.ओ.ह्युम ( जी हाँ, वही कांग्रेस संस्थापक) ने लिखित आदेश निकालकर पेरियार वास्तुकारों पर रोक लगा दी थी कि वे मंदिर निर्माण नहीं कर सकते. इस आदेश को कानून बना दिया था.

# ये नाई सर्जन या वैद्य कितने योग्य थे इसका अनुमान एक घटना से हो जाता है. सन 1781 में कर्नल कूट ने हैदर अली पर आक्रमण किया और उससे हार गया . हैदर अली ने कर्नल कूट को मारने के बजाय उसकी नाक काट कर उसे भगा दिया. भागते, भटकते कूट बेलगाँव नामक स्थान पर पहुंचा तो एक नाई सर्जन को उसपर दया आगई. उसने कूट की नई नाक कुछ ही दिनों में बनादी. हैरान हुआ कर्नल कूट ब्रिटिश पार्लियामेंट में गया और उसने सबने अपनी नाक दिखा कर बताया कि मेरी कटी नाक किस प्रकार एक भारतीय सर्जन ने बनाई है. नाक कटने का कोई निशान तक नहीं बचा था. उस समय तक दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी की कोई जानकारी नहीं थी. तब इंग्लॅण्ड के चकित्सक उसी भारतीय सर्जन के पास आये और उससे शल्य चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी सीखी. उसके बाद उन अंग्रेजों के द्वारा यूरोप में यह प्लास्टिक सर्जरी पहुंची.

अब ज़रा सोचें कि भारत में आज से केवल 175 साल पहले तक तो कोई जातिवाद याने छुआ-छूत नहीं थी. कार्य विभाजन, कला-कौशल की वृद्धी, समृद्धी के लिए जातियां तो ज़रूर थीं पर जातियों के नाम पर ये घृणा, विद्वेष, अमानवीय व्यवहार नहीं था. फिर ये कुरीति कब और किसके द्वारा और क्यों प्रचलित कीगई ? हज़ारों साल में जो नहीं था वह कैसे होगया? अपने देश-समाज की रक्षा व सम्मान के लिए इस पर खोज, शोध करने की ज़रूरत है. यह अमानवीय व्यवहार बंद होना ही चाहिए और इसे प्रचलित करने वालों के चेहरों से नकाब हमें हटनी चाहिए. साथ ही बंद होना चाहिए ये भारत को चुन-चुन कर लांछित करने के, हीनता बोध जगाने के सुनियोजित प्रयास. हमें अपनी कमियों के साथ-साथ गुणों का भी तो स्मरण करते रहना चाहिए जिससे समाज हीन ग्रंथी का शिकार न बन जाये. यही तो करना चाह रहे हैं हमारे चहने वाले, हमें कजोर बनाने वाले. उनकी चाल सफ़ल करने में‚ सहयोग करना है या उन्हें विफ़ल बनाना है? ये ध्यान रहे!

अंग्रेजों ने सर्वेक्षण करके जो आंकड़े जुटाए वो पूर्णतया उचित थे लेकिन उनको भारतीय समूह के सामने लाया गया पूर्णतया फेरबदल करने के बाद जो की भारतीय जनमानस की आत्मीयता, शिक्षा पद्धती, संस्कृति, परम्पराओं, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, आयुर्वेद, चिकित्सा, वेशभूषा, खानपान, रहन सहन आदि को पूर्णतया बदलने के और ईसाईयत को भारत में प्रभावशाली बनाने हेतु किया गया l

प्रसिद्ध गांधीवादी धर्मपाल जी ने इस विषय पर अंग्रेजों के समस्त एकत्रित और वितरित किये गए आंकड़ों की वास्तविकता सबके सामने रखी और दोनों में जो अंतर थे उनकी असमानताओं को उजागर किया l

तो वास्तविकता केवल वोही नहीं हो सकती जो आपको और हमको पढ़ाई जाती है ... अपने अपने स्तर पर भी वास्तविकताओं की खोज और शोध और उनकी साक्ष्यता और प्रमाणिकता को जांच कर सबके सामने रखा जाए l

देव-भूमि अखंड भारत की भूमि षड्यंत्रों का केंद्र बन कर रह गई है ... इन षड्यंत्रों को समझने का प्रयास करें और जानने का प्रयास करें की क्यों भारतीय जनमानस अपनी वास्तविक भारतीयता और संस्कृति से कोसों दूर चला गया ... और यदि कुछ समझ में आये तो उसके आधार पर कृपया अपने अपने सुझाव दें किस प्रकार भारत के जनमानस को उसकी संस्कृति और असली भारतीयता से जोड़ा जाये और उसको किस प्रकार पुनर्जीवित किया जा सकता है ?

जय श्री राम
जय भारत जय हो................

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